जब तक तोड़ूंगा नहीं तब तक छोड़ूंगा नहीं – दशरथ मांझी The Mountain Man

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दशरथ मांझी The Mountain Man : दोस्तों, हिंदी प्रेरणादायक कहानियाँ (Moral stories in hindi) के कारवाँ को आगे बढ़ाते हुए, आज फिर हम आपके लिए लेकर आये हैं एक नयी हिंदी प्रेरणादायक कहानी (Motivational story in hindi)। इसे पढ़िए, इससे सीखिए और इसे प्रेरणा लीजिये।

दोस्तों, आज हम आपको एक ऐसे इंसान की कहानी बताने जा रहे है जो अपने Goal को लेकर जिद्दी था। The  Mountain  Man (जब तक तोड़ूंगा नहीं तब तक छोड़ूंगा नहीं – दशरथ मांझी) बहुत पुरानी कहावत है कि “अकेला चना कभी भाड़ नहीं फोड़ सकता” लेकिन इस कहावत को पूरी तरह से झुठला दिया है बिहार के दशरथ मांझी ने। उन्होंने अपनी इच्छा शक्ति, दृढ़ संकल्प और सहस से अकेले दम पर वो असंभव कार्य कर दिखाया जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता।

जी हाँ उन्होंने अकेले दम पर सिर्फ छैनी और हथोड़े से 25  फ़ीट ऊँचे पहाड़ का सीना चीरकर उसमे से 360  फ़ीट लम्बा और 30  फ़ीट चौड़ा रास्ता बनाकर आश्चर्यजनक कारनामा कर दिखाया और ये साबित कर दिया कि अगर इंसान चाहे तो सहस, इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प के बल पहाड़ का सीना चीर सकता है और असंभव को संभव कर सकता है। उनके इस महान कार्य के लिए उन्हें “Mountain  Man” कहा जाता है।

Motivational story of Dashrath Manjhi in Hindi

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दशरथ मांझी का जन्म 1934 में बिहार के गया जिले के गेहलौर गांव में एक बहुत गरीब मजदूर परिवार में हुआ था। वे बिहार की आदिवासी जनजाति की सबसे निम्न स्तरीय मुसाहर जनजाति से थे। एक छोटे से झोंपड़े में रहने वाले दशरथ मांझी का बचपन भयंकर गरीबी और तंगहाली में गुजरा। जिसके कारण उन्हें छोटी उम्र में ही स्कूल जाने के बजाय मजदूरी करनी पड़ी। बचपन में ही उनका विवाह फाल्गुनी देवी से हो गया था। वे अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे।

The  Mountain  Man Dashrath Manjhi

एक बार दशरथ मांझी के लिए पीने का पानी ले जाते समय उनकी पत्नी पैर फिसलने से पहाड़ से गिरकर बुरी तरह घायल हो गयी। उन्हें तुरंत डॉक्टरी सहायता नहीं मिल पायी। क्योंकि अस्पताल उनके गाँव से 80  कि.मी. दूर शहर में था। अस्पताल ले जाते समय डॉक्टरी चिकित्सा के आभाव में उनकी पत्नी ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। अपनी पत्नी की मृत्यु से उन्हें गहरा धक्का लगा। ऐसा हादसा किसी और के साथ न हो इसलिए दशरथ मांझी ने पहाड़ को चीर कर वहाँ से रास्ता बनाने का निश्चय किया।

उन्होंने अपनी बकरियाँ बेचकर छैनी और हथौड़ा ख़रीदा। और 1960  में पहाड़ को तोडना शुरू किया। वे 22 साल तक लगातार बिना रुके, बिना थके , रात दिन पहाड़ तोड़ते रहे। उन्होंने अपनी झोंपड़ी भी पहाड़ के पास ही बना ली थी। कभी कभी वे भूखे प्यासे ही पहाड़ तोड़ते रहते थे। इस दौरान उनके घरवालो ने उनका काफी विरोध किया। लोगो ने उनको पागल कहना शुरू कर दिया था। उनकी काफी मजाक उड़ाई थी। पर अपनी धुन के पक्के दशरथ मांझी ने किसी की नहीं सुनी और तमाम परेशानियों , कठिन परिस्तिथियों को धता बता कर पहाड़ को चीरते रहे। अंत में पहाड़ को हार माननी पड़ी और 22 साल की कठोर मेहनत बाद 1982  में उन्होंने अकेले दम पर पहाड़ का सीना चीरकर उसमे से 360  फ़ीट लम्बा और 30  फ़ीट चौड़ा रस्स्ता बना दिया।

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उनके इस आश्चर्यजनक कारनामे के बाद उनके गांव से वजीरगंज शहर की दूरी 80  कि.मी. से घटकर मात्र 3 कि.मी.रह गयी। इसके बाद इनका काफी सम्मान किया जाने लगा और लोग इन्हे “दशरथ बाबा ” कहने लगे।

इस असंभव से दिखने वाले महान कार्य को करने बाद इन्हे सिर्फ इस बात का अफ़सोस रहा कि जिस पत्नी की प्रेरणा से इन्होने यह अद्भुत कार्य किया वह इसे देखने के लिए जीवित नहीं थी।

दोस्तों, दशरथ मांझी की ज़िंदगी साहस और प्रेरणाओं से भरी पड़ी है। इनकी तीन बातें बहुत प्रेरणा देती हैं।

Inspirational Lines by Dashrath Manjhi

1 . ये अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे और अपनी पत्नी की प्रेरणा से ही उन्होंने अकेले दम पर तमाम परेशानियों के बावजूद एक 25  फ़ीट ऊँचे पहाड़ का सीना चीर दिया।

2 . पहाड़ तोड़ने के दौरान एक पत्रकार इनके पास आता है, और कहता है कि “मैं आपकी कहानी अखबार में छपवाना चाहता हूँ लेकिन कोई अखबार वाला छापने को तैयार नहीं है।” वह अखबार वालो कि कार्यशैली से बहुत दुखी था।

तब दशरथ मांझी उससे कहते हैं कि “आप अपना अखबार क्यों नहीं निकल लेते ?”

इस पर पत्रकार कहता है कि “ये बहुत मुश्किल काम है।”

तब दशरथ मांझी कहते हैं कि “अखबार निकलने का काम पहाड़ तोड़ने से भी मुश्किल है क्या ?”

तब पत्रकार वहाँ से चुपचाप चला जाता है और कुछ दिन बाद वह अपना खुद का अखबार लेकर दशरथ मांझी के पास उन्हें खुशखबरी और धन्यवाद देने आता है।

3 . एक बार अपने गाँव में अस्पताल बनवाने और पीने के पानी की व्यवस्था करवाने के लिए वे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने के लिए ट्रेन से दिल्ली को रवाना हुए। लेकिन टिकट ना होने कारण टी.टी. ने उन्हें ट्रेन से उत्तर दिया। तब उन्होंने लगभग 1000  कि.मी. कि दूरी रेल की पटरी के सहारे सहारे पैदल ही पूरी की।

तो दोस्तों ये थी दशरथ मांझी की मजबूत इच्छाशक्ति , साहस और दृढ़ संकल्प। 17  अगस्त 2007  को दिल्ली के AIIMS  अस्पताल में कैंसर से लड़ते हुए इनकी मृत्यु हो गयी। बिहार सरकार ने पूरे राजकीय सम्मान के साथ इनका अंतिम संस्कार किया।

उनकी ज़िंदगी पर “दशरथ मांझी : The  Mountain  man ” नाम से एक फिल्म भी बनायीं गयी है।

दोस्तों, आज दशरथ मांझी भले ही हमारे बीच नहीं हों, लेकिन उनका यह अद्भुत कार्य आने वाली कई पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।

उनका कहना था कि “भगवान के भरोसे मत बैठो , क्या पता भगवन हमारे भरोसे बैठा हो तथा पहाड़ तोड़ने के दौरान वे पहाड़ से कहा करते थे – जब तक तुझे तोड़ूंगा नहीं तब तक तुझे छोड़ूंगा नहीं।

यह कहानी हमें यह प्रेरणा देती है कि हमें कभी भी भगवान के भरोसे नहीं बैठना चाहिए। हमें एक बड़ा लक्ष्य बनाना चाहिए और साहस के साथ मजबूत इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प से तब तक अपने लक्ष्य को छोड़ना नहीं छोड़ना नहीं चाहिए जब तक कि हम उसे हासिल ना कर लें।

और अगर कभी भी कोई मुश्किल आये तो दो बात याद रखें।

1 . क्या हमारा कार्य पहाड़ तोड़ने से भी मुश्किल है ?
2 . जब तक तोड़ूंगा नहीं तब तक छोड़ूंगा नहीं।

 





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4 thoughts on “जब तक तोड़ूंगा नहीं तब तक छोड़ूंगा नहीं – दशरथ मांझी The Mountain Man”

  1. Wow mere to rongte hi khade ho gaye Manjhi ki kahani padh kar. Agar ichha shakti ho to insaan kya nahi kar sakta.

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