मजबूत इच्छाशक्ति से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है : Impossible Become Possible by Strong Willpower

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Hello दोस्तों, आज के इस आर्टिकल में हम आपको Impossible Become Possible by Strong Willpower in Hindi / मजबूत इच्छाशक्ति से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है के बारे में बता रहे हैं।

मजबूत इच्छाशक्ति से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है (Impossible can be made possible by a strong willpower)

impossible-become-possible-by-strong-willpower-in-hindiनेपोलियन हिल एक अमेरिकन लेखक थे।  उन्होंने अलग अलग विषयों पर बहुत सी किताबें लिखीं। जिनमे से उनकी एक किताब “Think and Grow Rich ” (Hindi Edition – सोचिये और अमीर बनिए) बेस्ट सेलर रही। जिसकी दुनिया भर में लगभग 70 मिलियन से भी ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं। ये किताब मुझे बहुत पसंद है और मैं इसे कई बार पढ़ चुका हूँ।

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इस किताब में इन्होने अपनी ज़िंदगी से जुडी एक सच्ची घटना का जिक्र किया है। जिसमे उन्होंने बताया है कि अगर आपके अंदर किसी काम को करने की मजबूत इच्छाशक्ति है और दृढ संकल्प है तो आप नामुमकिन को भी मुमकिन बना सकते हैं, प्रकृति को भी हरा सकते है और किसी भी काम को संभव कर सकते हैं।

इस किताब में इन्होने अपने बेटे के बारे में बताया है जो जन्म से ही सुनने में अक्षम (बहरा) था। लेकिन इन्होने अपनी मजबूत इच्छाशक्ति से अपने बेटे की सुनने की क्षमता को बढाकर उसे मूक बधिरों की तरह जिंदगी जीने के बजाय आम बच्चों की तरह ज़िंदगी जीने लायक बनाया। अब वह बच्चा इशारों में बातचीत करने के बजाय आम लोगों की तरह बातचीत कर सकता था और उनकी बात सुन सकता था और समझ सकता था।  उस बच्चे ने आगे चलकर अपने जैसे बहुत से लोगो की ज़िंदगी में बदलाव किया।

उनके जीवन से जुडी इस घटना ने मुझे बहुत प्रभावित और प्रेरित किया है और इसलिए मैं इसे आपके सामने पेश कर रहा हूँ और मैं दावा करता हूँ कि अगर आपने इसे seriously एक बार पढ़ लिया तो उनकी ये घटना आपकी सोच में बदलाव लाएगी और आपके सोचने के नज़रिये को बदल देगी।

तो आइये उनकी जिंदगी की सच्ची घटना का जिक्र उन्ही के शब्दों में पढ़ते हैं।

मैंने उसके पैदा होने के कुछ मिनटों बाद उसे पहली बार देखा। जब वह इस संसार में आया तो उसके कान नही थे और जब डॉक्टरों से जोर देकर पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह बच्चा जीवन भर बहरा और गूँगा रहेगा।

मैंने डॉक्टर की राय को चुनौती दी। मुझे ऐसा करने का अधिकार था। मैं बच्चे का पिता था। मैंने भी अपनी राय दी, परंतु मैंने अपनी राय को अपने दिमाग में ही सोचा, इसे अपने दिल तक ही रखा। अपने दिल में मैं जानता था कि मेरा पुत्र सुनेगा भी और बोलेगा भी। किस तरह? मुझे विश्वास था कि कोई न कोई तरीका तो होगा और मैं जानता था कि मैं वह तरीका ढूँढ लूँगा। मैंने अमर इमर्सन के इन शब्दों को याद किया, “सारी दुनिया हमें आस्था सिखाती है। हमें सिर्फ आज्ञा भर माननी है। हममें से हर एक के लिए मार्गदर्शन उपलब्ध है और केवल सुनने भर से हम सही शब्द सुन सकेगें।’ सही शब्द ? प्रबल इच्छा ! यह इच्छा उस समय मेरे मन में किसी भी अन्य भावना से अधिक प्रबल थी कि मेरा पुत्र बहरा और गूँगा नहीं होना चाहिए। उस इच्छा से मैं जरा भी पीछे नहीं हटा, एक सेकेंड के लिए भी नही। मैं इस बारे में क्या कर सकता था?

किसी तरह मैंने एक ऐसा रास्ता खोजा लिया जिससे मैं अपने बच्चे के मस्तिष्क में वही प्रबल इच्छा भर दूँ जो मेरे मस्तिष्क में भी  थी  – इस बात की प्रबल इच्छा कि वह बिना कानों के भी सुनने के तरीके खोजने में जुटा रहे। जैसे ही बच्चा इतना बड़ा हुआ कि वह मेरे साथ सहयोग कर सके, मैं पूरी तरह सुनने की प्रबल इच्छा को उसके दिमाग में भरने लगा। मैंने उसे यकीन दिलाया कि प्रकृति उसकी इस प्रबल इच्छा को शारीरिक यथार्थ में बदल देगी। यह सारा चिंतन मेरे अपने मस्तिष्क में चलता रहा, परंतु मैंने किसी को भी यह बात नही बताई। हर दिन मैं खुद से किए गए वादे को दोहराता रहा कि मेरा पुत्र बहरा और गूँगा नहीं रहना चाहिए।

जब वह बड़ा हुआ और अपने आस पास की चीजों को देखने लगा तो हमने पाया कि उसमे सुनने की थोड़ी शक्ति तो थी। जब वह उस उम्र में पहुँचा जब बच्चे आम तौर पर बोलना शुरू करते हैं, तो उसने बोलने की कोई कोशिश नहीं की, परंतु उसकी हरकतों से हम समझ जाते थे कि वह कुछ आवाजों को थोड़ा बहुत सुन सकता है। मैं इतना ही तो जानना चाहता था। मुझे विश्वास था कि अगर वह जरा सा भी सुन सकता था, तो उसकी सुनने की क्षमता बढ़ाई सकती है। फिर ऐसा कुछ हुआ जिससे मुझे आशा बँधी। यह एक अनपेक्षित संयोग था।

एक  दुर्घटना जिसने जीवन बदल दिया

हम एक रिकार्ड प्लेयर लाए। जब बच्चे ने इसका संगीत पहली बार सुना, तो वह खुशी के मारे पागल हो गया और उसने उस मशीन पर कब्जा कर लिया। एक बार वह रिकार्ड प्लेयर के सामने खड़े होकर उसी रिकार्ड को दो घंटे तक सुनता रहा, और उसके दांत उस मशीन के किनारे पर जकड़े हुए थे। उसकी इस आदत का महत्व हमें कई वर्षो  तक समझ में नही  आया, जब तक कि हमें ध्वनि के ‘बोन कंडक्शन’ के सिद्धान्त के बारे में पता नहीं चला। रिकार्ड प्लेयर पर उसके कब्जे के कुछ समय बाद मुझे पता चला कि अगर मै उसके सर के नीचे की तरफ वाली हड्डी पर अपने होंठ लगाकर कुछ बोलूँ तो वह मेरी बातों को साफ़ साफ़ सुन सकता है। यह पता चलने के बाद कि वह मेरी आवाज को साफ़ सुन सकता है मैंने तत्काल उसके मस्तिष्क में सुनने और बोलने की इच्छा को भरना शरू कर दिया।

मुझे जल्दी ही यह जानकारी मिली कि बच्चे को बेड टाइम कहानियों में मजा आता है। इसलिए मैंने ऐसी कहानियाँ लिखीं जो उसे स्वावलंबन, कल्पनाशिक्त और सुनने तथा सामान्य बनने की तीव्र इच्छा विकसित करने का संदेश दे सकें। खास तौर पर मैंने एक कहानी पर जोर दिया, जिसे मैं उसे बार बार नए और नाटकीय अंदाज में बदल बदलकर सुनाता रहा। मैं इस कहानी के द्वारा उसके मस्तिष्क में यह विचार बीज बोना चाहता था कि उसकी शारीरिक स्थिति दुर्भाग्य नहीं है, बल्कि एक छुपा हुआ बहुमूल्य सौभाग्य बन सकता है।

 

उसने छह सेंट में एक नई दुनिया जीत ली !

जब मै पिछली बातें याद करता हूँ तो मैं अब यह देख सकता हूँ कि चूँकि मेरे पुत्र को मुझ पर विश्वास था इसलिए उसे इतने चमत्कारी परिणाम मिले। उसने बिना सवाल पूछे मेरी हर बात मानी। मैंने उसके दिमाग मे यह विचार बिठा दिया कि वह अपने बड़े भाई से ज्यादा लाभप्रद स्थिति में है और उसे कई तरीको से लाभ मिलेगा। उदाहरण के तौर पर स्कूल में टीचर जब देखेंगे कि उसके कान नहीं है, तो इस वजह से वे उसकी तरफ अधिक ध्यान देंगे और उसके साथ असाधारण दयालुता से पेश आएँगें। और सचमुच टीचर्स ने ऐसा ही किया। मैंने उसके दिमाग में यह विचार भी बिठा दिया कि जब वह पेपर बेचने लायक बड़ा हो जाएगा  (उसका बड़ा भाई पहले से ही पेपर बेचता था) तो उसे अपने भाई की तुलना में अधिक लाभ होगा, क्योंकि लोग उसके सामान के अधिक पैसे देगें। जब लोग देखेंगें कि कान न होने के बावजूद वह इतना मेहनती और समझदार बच्चा है तो वे उसके साथ अतिरिक्त सहानुभूति रखेंगें।

जब वह सात साल का हुआ, तो उसने पहली बार इस बात का प्रमाण दिया कि उसके दिमाग में मेरे बोए गए बीज अब फल देने लगे हैं। कई महीनों तक उसने अखवार बेचने की इच्छा जाहिर की, परंतु उसकी माँ इस बात के लिए तैयार नहीं हुई और उन्होंने उसे यह काम करने की अनुमति नही दी। आखिरकार उसने इस मामले को अपने हाथ में ले लिया। एक दोपहर जब वह घर में अकेला था, यानी नौकरों के सिवा वहाँ कोई नहीं था, तो वह किचन की खिड़की से बाहर निकला, जमीन पर कूदा और बाहर की तरफ चल पड़ा। उसने पड़ोस के जूते बनाने वाले से छह सेंट की पूँजी उधार ली, अखबार खरीदने में इस पूँजी का निवेश किया, अखबार बेचे, फिर से निवेश किया और देर शाम तक वह इसी तरह बार-बार निवेश करता रहा और अखवार बेचता रहा। आखिर अपने बही खाते को सही करने के बाद और अपने बैंकर से लिए छह सेंट के उधार को वापस करने के बाद उसने अपना मुनाफा गिना – बयालीस सेंट। जब हम रात को घर लौटे, तो हमने देखा कि वह अपने बिस्तर पर गहरी नीदं में सो रहा है और बयालीस सेंट उसकी मुठ्ठी में जकड़े हुए है। उसकी माँ ने उसकी मुठ्ठी खोली, सिक्के निकाले और रो पड़ी। यह भी होना था ! अपने पुत्र की पहली सफलता पर रोना तो उचित नहीं था। मेरी प्रतिक्रिया बिल्कुल विपरीत थी। मैं खुलकर हँसा, क्योंकि मैं जनता था कि अपने बच्चे के दिमाग में मैंने आत्मविश्वास का रवैया विकसित करने का जो प्रयास किया था मैं उसमें सफल हुआ था।

उसकी माँ ने उसके पहले व्यावसायिक अभियान में यह देखा कि एक बहरा सा बच्चा सडको पर जाकर पैसे कमाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहा था। मैंने उसमे एक बहादुर, महत्वाकाक्षी, आत्मविश्वासी छोटे बिजनेसमैन को देखा जिसका खुद में विश्वास सौ फीसदी बढ़ गया था क्योंकि वह अपनी मर्जी से बिजनेस में गया था और उसने सफलता हासिल की थी। इस सौदे से मुझे खुशी हुई क्योंकि इससे मैं जान गया कि उसने अब अपने आत्माविश्वास और सफलता का वह प्रमाण दे दिया था जो जीवन भर उसका साथ देगा।

 

छोटा बहरा बच्चा जो सुनने लगा

छोटा बहरा बच्चा स्कूल पास कर गया, और बिना अपने टीचर्स के लेक्चर सुने कॉलेज भी पास कर गया। वह अपने टीचर्स की बात तभी सुन पाता था जब वे पास में खड़े होकर जोर से चिल्लाते थे। वह मूक-बाधिर बच्चों के स्कूल में पढ़ने नही गया। हमने उसे इस बात की इजाजत नहीं दी कि वह इशारों की भाषा सीखे। हमने संकल्प कर लिया था कि वह एक सामान्य जीवन जिएगा और सामान्य बच्चों के साथ रहेगा। और हम इस फैसले पर डटे रहे, हालाँकि कई बार स्कूल के अधिकारियों से इस बारे में हमारी काफी बहस हुई।

जब वह हाई स्कूल में था, तो हमने बिजली से चलने वाले एक हियरिंग एड को आजमाकर देखा,  परंतु उससे भी फायदा नहीं हुआ। कॉलेज में उसके आख़िरी सप्ताह के दौरान एक ऐसी घटना हुई जो उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण टर्निग पॉइंट साबित हुई। यह संयोग ही था कि उसे बिजली का एक और हियरिंग एड मिल गया, जो उसे बतौर टायल भेजा गया था। वह अनमने ढंग से इसका परीक्षण करने के लिए तैयार हुआ, क्योकि हियरिंग एड के मामले में वह पहले भी एक बार निराश हो चुका था। आख़िरकार उसने उस यंत्र को उठाया और लापरवाही से अपने सिर पर जमा लिया, बैटरी को चालू किया और लो, जादू के एक झटके से वह सुनने लगा। जिन्दगी भर से उसने आम लोगों की तरह सुनने का जो सपना देखा था वह सच हो गया। जीवन में पहली बार वह उतनी ही स्पष्टता से सुन पा रहा था जिस तरह से आम लोग सुनते है।

अपने हियरिंग एड की सफलता से अभिभूत होकर और अपनी बदली हुई दुनिया की खुशी का इजहार करने के किए उसने फोन पर अपनी माँ से बात की और उसे उनकी आवाज साफ़ सुनाई दे रही थी। अगले दिन उसने क्लास में अपने प्रोफेसरों की आवाज को भी साफ़ सुना और ऐसा जिन्दगी में पहली बार हुआ था। पहली बार वह दूसरे लोगो के साथ बिना किसी बाधा के बातचीत कर सकता था। और उसे कोई बात सुनने के लिए दूसरों को जोर से बोलने की अब कोई जरूरत नहीं रह गई थी। सचमुच, उसकी दुनिया बदल चुकी थी। प्रबल इच्छा ने फल देना शुरू कर दिया था, परंन्तु जीत अभी पूरी नही हुई थी। बच्चे को अब भी एक निश्चित और प्रेक्टिकल तरीका ढूँढना था। जिसके सहारे वह अपनी कमजोरी को ताकत में बदल सकें।

 

विचार जो चमत्कार करता है

हालाँकि उसे इस बात का एहसास नहीं था कि जो हासिल हुआ था वह कितना महत्त्वपूर्ण था, परंन्तु आवाज की दुनिया में पहली बार कदम रखते हुए उसकी खुशी का ठिकान नही था और उसने उस हियरिंग एड बनाने वाली कंपनी के निर्माता को एक पत्र लिखा। जिसमे उसने पूरे उत्साह से अपना अनुभव बताया। उस पत्र में ऐसा कुछ था जिसकी वजह से कंपनी ने उसे न्यूयॉर्क आने का आमन्त्रण दिया। जब वह वहाँ पहुँचा तो उसे फैक्ट्री में ले जाया गया।

चीफ इंजीनियर को अपना अनुभव बताते समय उसके दिमाग में एक कल्पना, एक विचार एक प्रेरणा (आप इसे चाहे किसी भी नाम से पुकार ले) कौंध गई। इसी विचार के आवेश ने उसकी कमजोरी को ताकत में, उसके कष्ट को संपति में बदल दिया और इसी की वजह से हजारों लोगों के जीवन में सुख के रोशनी फैल गई। इस विचार के आवेश का सारांश यह है : उसने सोचा कि अगर बिना हियरिंग एड वाले लाखों बहरे लोगों तक अपनी बदली हुई दुनिया की कहानी पहुँचा सके तो वह उनकी मदद कर सकता है। एक महीने तक उसने गहन शोध किया, जिस दौरान  उसने हियरिंग एड के निर्माता के पूरे माकेर्टिंग सिस्टम का विश्लेषण किया। उसने ऐसे तरीके खोजे जिनके द्वारा वह बहरे लोगो तक अपना संदेश पहुँचा सके।

जब यह हो गया, तो उसने दो साल की योजना कागज पर बनाई, जो उसके विश्लेषण के परिणामों पर आधारित थी। जब उसने कंपनी के सामने अपनी योजना प्रस्तुत की तो उसे तत्काल नौकरी दे दी गई। ताकि वह अपनी महत्वाकांक्षी योजना को सच साबित कर सके। जब उसने यह काम शुरू किया तो उसने सपने में भी यह नहीं सोचा था कि वह हजारों बहरे लोगों के जीवन को आशा और राहत से भर देगा। जो उसकी मदद के बिना हमेशा बहरे बने रहने के लिए अभिशप्त रहते।

मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि ब्लेयर (नेपोलियन के बेटे का नाम ) पूरा  जीवन बहरा और गूंगा ही बना रहता अगर उसकी माँ और मैंने उसके मस्तिष्क को उस तरह के साँचे में नहीं ढाला होता। जब मैंने उस के मन में प्रबल इच्छा का यह बीज बोया कि वह आम आदमी की तरह सुन और बोल सके, तो उस बीज के साथ एक ऐसा विचार भी गया। इसी विचार के कारण प्रकृति को एक पुल बनाना पड़ा और उसके मस्तिष्क तथा बाहरी दुनिया के बीच की मौन की खाई को पाटना पड़ा।

सच है! प्रबल इच्छा भौतिक रूप में आने के तरीके खोज ही लेती है। ब्लेयर ने यह इच्छा की कि लोगो की तरह सुनने की शक्ति उसके पास हो और अब यह शक्ति आपके पास है। वह एक कमी के साथ पैदा हुआ था और उसे बड़ी आसानी से सड़क पर कुछ पेंसिलों और एक टिन के डिब्बे के साथ भेजा जा सकता था। मैंने उसके बचपन में उसके दिमाग में जो छोटा ‘सफेद झूठ’ डाल दिया था कि उसकी कमी दरअसल उसका सबसे बड़ा लाभ है, और वह उसके कारण सफल हो सकता है, अब सच साबित हो गया था। सचमुच ऐसा कुछ भी नहीं है, चाहे वह सही हो या गलत, जिसे आस्था और प्रबल इच्छा मिलकर हकीकत में नहीं बदल सकते। यह गुण हर इंसान को मुफ्त में मिलते है।

(नेपोलियन हिल – अपनी किताब  Think and Grow Rich में)

तो दोस्तों आपने देखा कि कैसे नेपोलियन हिल ने अपने बच्चे को अपनी मजबूत इच्छाशक्ति से एक बहरे बच्चे से एक सामान्य रूप से सुनने वाला बनाया, आत्मनिर्भर बनाया। सच में अगर किसी काम को करने की हमारी इच्छाशक्ति मजबूत है, दृढ है, तो हम दुनिया का कोई भी काम कर सकते हैं। नामुमकिन को मुमकिन बना सकते हैं, असंभव को संभव बना सकते हैं और प्रकृति को चुनौती दे सकते हैं। एक बार अगर हमने किसी काम को करने की अपनी इच्छाशक्ति को मजबूत बना लिया तो हमें अपने काम को पूरा करने के नए नए रास्ते अपने आप ही मिलते जाते हैं।

नोट – यह आर्टिकल नेपोलियन हिल की किताब “Think and Grow Rich” से लिया गया है जिसका हिंदी अनुवाद मैंने यहाँ आपके सामने प्रस्तुत किया है।

 


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