Hindi moral story : दोस्तों, हिंदी प्रेरणादायक कहानियाँ (Moral stories in hindi short) के कारवाँ को आगे बढ़ाते हुए, आज फिर हम आपके लिए लेकर आये हैं एक नयी हिंदी प्रेरणादायक कहानी (Motivational story in hindi)। इसे पढ़िए, इससे सीखिए और इसे प्रेरणा लीजिये।
आप अपनी ज़िंदगी के किसी भी काम को ले लीजिये चाहे वो किसी एक खास क्षेत्र में एक्सपर्ट होना हो जैसे क्रिकेट, सिंगिंग, एक्टिंग या कोई परीक्षा पास करनी हो या फिर हमारा रोज़मर्रा का रोजगार। अगर हमें उस काम में निपुण होना है , दक्ष होना है तो उसका निरंतर अभ्यास करना पड़ेगा। बिना अभ्यास के हम निपुण नहीं हो सकते। अभ्यास असंभव को भी संभव कर देता है। आइये, अभ्यास का महत्व इस कहानी से समझते हैं।
महाभारत के समय गुरु द्रोणाचार्य पांडवो तथा कौरवों को धनुर्विद्या की शिक्षा देते थे। उन्हीं दिनों हिरण्यधनु नामक निषादों के राजा का पुत्र एकलव्य भी धनुर्विद्या सीखने के उद्देश्य से द्रोणाचार्य के आश्रम में आया, किन्तु निम्न वर्ण का होने के कारण द्रोणाचार्य ने उसे अपना शिष्य बनाना स्वीकार नहीं किया।
कारण पूछने पर द्रोणाचार्य ने बताया कि वे हस्तिनापुर के राजा को वचन दे चुके हैं कि वे सिर्फ राजकुमारों को ही शिक्षा देंगे।
निराश होकर एकलव्य वन में चला गया। उसने द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को गुरु मान कर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा। एकाग्रचित्त मन से साधना करते हुये अल्पकाल में ही वह धनुर्विद्या में अत्यन्त निपुण हो गया।
एक दिन सारे राजकुमार गुरु द्रोण के साथ आखेट के लिये उसी वन में गये जहाँ पर एकलव्य आश्रम बना कर धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा था। राजकुमारों के साथ एक कुत्ता भी था | राजकुमारों का कुत्ता भटक कर एकलव्य के आश्रम में जा पहुँचा। एकलव्य को देख कर वह भौंकने लगा। इससे क्रोधित हो कर एकलव्य ने उस कुत्ते पर अपना बाण चला-चला कर उसके मुँह को बाणों से से भर दिया। एकलव्य ने इस कौशल से बाण चलाये थे कि कुत्ते को किसी प्रकार की चोट नहीं लगी किन्तु बाणों से बिंध जाने के कारण उसका भौंकना बन्द हो गया।
कुत्ते के लौटने पर जब अर्जुन ने धनुर्विद्या के उस कौशल को देखा तो वे द्रोणाचार्य से बोले, “हे गुरुदेव! इस कुत्ते के मुँह में जिस कौशल से बाण चलाये गये हैं उससे तो प्रतीत होता है कि यहाँ पर कोई मुझसे भी बड़ा धनुर्धर रहता है।” अपने सभी शिष्यों को ले कर द्रोणाचार्य एकलव्य के पास पहुँचे और पूंछा, “हे वत्स! क्या ये बाण तुम्हीं ने चलाये हैं।?”
एकलव्य के स्वीकार करने पर उन्होंने पुनः प्रश्न किया,’तुम्हें धनुर्विद्या की शिक्षा देने वाले कौन हैं?’
एकलव्य ने उत्तर दिया, ‘गुरुदेव! मैंने तो आपको ही गुरु स्वीकार कर के धनुर्विद्या सीखी है।’ इतना कह कर उसने द्रोणाचार्य को उनकी मूर्ति के समक्ष ले जा कर खड़ा कर दिया। और कहा कि मैं रोज़ आपकी मूर्ति कि वंदना करके बाण चलने का कड़ा अभ्यास करता हूँ और इसी अभ्यास के चलते मैं आज आपके सामने धनुष पकड़ने के लायक बना हूँ।
द्रोणाचार्य ने कहा कि – तुम धन्य हो वत्स ! तुम्हारे अभ्यास ने ही तुम्हे इतना श्रेष्ठ धनुर्धर बनाया है और आज मैं समझ गया कि अभ्यास ही सबसे बड़ा गुरु है।
दोस्तों इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है निरंतर अभ्यास , कड़ी मेहनत और लगन से ही हम किसी काम में निपुण हो सकते है , श्रेष्ठ हो सकते है।