Couplets of Kabir in Hindi : कबीर के 15 दोहे जो हमें जीने का तरीका सिखाते हैं

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We provide कबीर के दोहे (Couplets of kabir / kabir ke dohe /Couplets of Kabir in Hindi), कबीरदास के दोहे (kabir das ke dohe in hindi).

महात्मा कबीर एक ऐसी शख्शियत (personality) थे जो जात पात, ऊँच-नीच, छोटा बड़ा, अमीर गरीब जैसी चीजों से, समाज में व्याप्त कुरीतियों (curiosities) से, सामाजिक विसंगतियों (anomalies) से बहुत दूर थे। वह ना तो हिन्दू थे और न ही मुसलमान। वो राम की भक्ति भी करते थे और रहीम की भी। कबीर ने आज से लगभग 600 साल पहले ही सामाजिक विसंगतियों, कुरीतियों, धर्म के नाम पर होने वाली लडाई, हिन्दुओं के कर्मकांडों, पाखंडों, मुसलमानों की धर्मान्धता पर अपने विचारों के जरिये कुठराघात किया था।

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कबीरदास ने अपने विचारों को (kabir thoughts in hindi), अपने चिंतन को, अपने उपदेशों को दोहों के रूप में प्रस्तुत किया था। 600 साल बाद आज भी उनके द्वारा कही गयी बातें, उनके विचार , उनके दोहे उतने ही प्रभावशाली है (repeat the teachings), उतने ही सच्चे हैं, उतने ही ज्ञानवर्धक है (Knowledgable sant kabir thoughts), और उतने ही ज़रूरी हैं जितने तब थे। उन्होंने अपने दोहों के जरिये समाज को एक ऐसा आइना दिखाया है, एक ऐसा सन्देश दिया है जिससे लोग अपने मन के अंधकार को दूर करके, अपने आप को एक सच्चा, निर्मल, निश्छल और एक बेहतर इन्सान बना सकते हैं।

उनके दोहों को पढ़कर, उनके विचारों को पढ़कर मन का अंधकार ख़त्म होता है, जीने की नयी राह मिलती है, हर मुश्किल आसान लगने लगती है, मन निर्मल (pure/sincere/clear mind) हो जाता है।

आज मैं Gyan Versha पर आपको कबीर के संकलन में से छाँटकर ऐसे ही 15 दोहों के बारे में बता रहा हूँ जो आपके सोचने के तरीके को, जिन्दगी जीने के नज़रिये को पूरी तरह बदल देंगे।  

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय।।

कबीरदास जी कहते हैं कि हम सभी परेशानियों में फंसने के बाद ही ईश्वर को याद करते हैं(stuck in troubles), सुख में कोई याद नहीं करता। जो यदि सुख में याद किया जाएगा तो फिर परेशानी क्यों आएगी।

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अर्थात जब इन्सान दुःख में होता है, परेशानियों में घिरा होता है, किसी मुश्किल में फंसता है, उसका बुरा वक्त चल रहा होता है, तो उसे भगवान, ईश्वर याद आते हैं। लेकिन जैसे ही उसके दुःख दूर होते हैं, बुरा वक्त ख़त्म होता है तो वह सुख को भोगने के चक्कर में ईश्वर को भूल जाता है। अगर आप ईश्वर को याद करते हैं, उसकी भक्ति करते हैं, तो उसे हर पल, हर स्थिति में, हर समय याद करें। सिर्फ दुःख में ही नहीं, ईश्वर को सुख में भी याद करें और अपने सुखों के लिए उसे धन्यवाद् दें।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय।
जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय।।

कबीरदास जी कहते हैं कि जब मैं पूरी दुनिया में खराब और बुरे लोगों को देखने निकला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला। और जब मैंने खुद के भीतर बुराई खोजने की कोशिश की तो मुझे मुझसे बुरा कोई नहीं मिला।

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अर्थात इस संसार में खुद से ज्यादा बुरा कोई नहीं है, खुद से ज्यादा बुराई किसी में भी नहीं हैं। लोग खुद को छोड़कर दूसरों में बुराई ढूंढते हैं और खुद को सबसे अच्छा समझते हैं। अगर लोग दूसरों में बुराई ढूँढने के बजाय खुद की बुराइयों का पता लगाये और उन्हें दूर कर ले तो दुनिया से बुराई अपने आप ही ख़त्म हो जाएगी।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।

इस दोहे के माध्यम से कबीर कहना चाहते हैं कि सिर्फ बड़ा होने से कुछ नहीं होता। बड़ा होने के लिए विनम्रता जरूरी गुण है। जिस प्रकार खजूर का पेड़ इतना ऊंचा होने के बावजूद न पंथी को छाया दे सकता है और न ही उसके फल ही आसानी से तोड़े जा सकते हैं।

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अर्थात ऐसे बड़े होने से कुछ फायदा नहीं है जिससे किसी को कोई लाभ नहीं मिल सके। अगर आप वास्तव में ही बड़ा बनना चाहते हैं तो विनम्र बनो, दूसरो की भलाई करो, जरूरतमंद की मदद करो, किसी का सहारा बनो।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरी करोगे कब।।

कबीरदास जी कहते हैं कि कल का काम आज ही खत्म करें और आज का काम अभी ही खत्म करें। ऐसा न हो कि प्रलय आ जाए और सब-कुछ खत्म हो जाए और तुम कुछ न कर पाओ।

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कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हर काम को कल पर टाल देते हैं। जिससे उन्हें बाद में पछताना पड़ता है और कभी कभी तो वह काम शुरू ही नहीं हो पाता है। कल पर काम टालने की आदत से कभी कभी हम बहुत महत्वपूर्ण मौके अपने हाथ से गँवा देते हैं। कल का क्या भरोसा? क्या पता कल क्या हो जाये? क्या पता कल परिस्थितियाँ ही बदल जायें? कल उस काम को करने का मौका ही न मिले? इसलिए किसी भी काम को कल पर ना टालें उन्हें आज ही करिये।

ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोए।
अपना तन शीतल करे, औरन को सुख होए।।

कबीरदास जी कहते हैं कि हमेशा ऐसी बोली और भाषा बोलिए कि उससे आपका अहम न बोले। आप खुद भी सुकून से रहें और दूसरे भी सुखी रहें।

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हमारे बोलने से ही, हमारे बात करने के तरीके से ही हमारा व्यक्तित्व झलकता है। हमारे बोलने से ही लोग हमारे दोस्त या दुश्मन बनते हैं। इसलिए हमें हमेशा ऐसी ऐसी बोली बोलनी चाहिये, ऐसी बात बोलनी चाहिये जिससे हमारा घमंड ना झलके, किसी को दुःख ना पहुँचे, किसी को बुरा ना लगे। हमेशा प्यार से, मुस्कुराकर, विनम्रता से ही बात करनी चाहिये।

धीरे-धीरे रे मन, धीरे सब-कुछ होए।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए।

कबीरदास जी कहते हैं कि मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है। अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे, तब भी फल तो ऋतु  आने पर ही लगेगा।

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दुनियाँ में हर चीज का एक वक्त होता है, एक समय होता है। हर चीज, हर काम अपने समय पर ही होता है। इसलिए हमें धैर्य रखना चाहिये, सब्र रखना चाहिये। हड़बड़ाहट और जल्दबाजी से काम ही बिगड़ते हैं।

साईं इतनी दीजिए, जा में कुटुंब समाए।
मैं भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए।।

यहां कबीर ईश्वर से सिर्फ उतना ही मांगते हैं जिसमें पूरा परिवार का खर्च चल जाए।  न कम और न ज्यादा।  कि वे भी भूखे न रहें और दरवाजे पर आया कोई साधू-संत भी भूखा न लौटे।

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आजकल हर इन्सान दुनिया की हर चीज को पाना चाहता है। दुनिया की हर सुख, सुविधा, भोग विलास की वस्तु को अपने पास रखना चाहता है और इन सब चीजों को पाने की चाहत में वो कभी कभी गलत काम करता है, गलत रास्तों पर चल पड़ता है। ये ही उसके दुखों का कारण बंता है। इन्सान के पास चाहे कितना भी आ जाये वो कभी संतुष्ट नहीं हो सकता। हमारे पास जो कुछ है, जितना भी है उसी में खुश रहना चाहिये।

पोथि पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोए।
ढाई आखर प्रेम के, पढ़ा सो पंडित होए।।

कबीर कहते हैं कि किताबें पढ़ कर दुनिया में कोई भी ज्ञानी नहीं बना है। बल्कि जो प्रेम को जान गया है वही दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी है।

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इसलिए किताबें पढने के साथ साथ व्यवाहरिक ज्ञान भी होना जरुरी है। हमें किसी से ईर्ष्या, जलन, नफरत (jealousy, hatred) नहीं करनी चाहिये। सबसे प्रेम से पेश आना चाहिये। (treated with love)

चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए।
वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए।।

कबीर कहते हैं कि चिंता रूपी चोर सबसे खतरनाक होता है, (Kabir says that a thief in the form of worry is the most dangerous) जो कलेजे में दर्द उठाता है(akes pain in the liver)। इस दर्द की दवा किसी भी चिकित्सक के पास नहीं होती।

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चिंता चिता के सामान होती है। जो इन्सान को अन्दर ही अन्दर खा जाती है। इसलिए हमें जीवन में किसी भी चीज को लेकर, किसी भी बात को लेकर चिंता नहीं करनी चाहिये। चिंता करने के बजाय उस काम, उस बात, उस समस्या के बारे शांति से सोचना चाहिये फिर उसका समाधान ढूंढना चाहिये।

आछे  पाछे दिन पाछे गए, हरी से किया न हेत ।

अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।।

कबीर कहते हैं कि देखते ही देखते सब भले दिन , अच्छा समय बीतता चला गया, तुमने प्रभु से लौ नहीं लगाई, प्यार नहीं किया। जैसे किसान ने समय रहते अपने खेत की रखवाली नहीं की और जब चिड़िया उसकी फसल को बर्बाद कर देती है फिर पछताता है। समय बीत जाने पर पछताने से क्या मिलेगा?

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दोस्तों अगर हमें कोई काम करना ही है तो उसे समय रहते ही कर लेना चाहिये। किसी भी काम को अगले दिन या बाद के लिए नहीं टालना चाहिये। काम को टालने से काम कभी शुरू नहीं होता है और अगर शुरू भी हो गया तो फिर पूरा नहीं होता है और फिर उस काम का समय निकल जाने पर सिवाय पछताने के कुछ हासिल नहीं होता है।

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय।

यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।।

कबीर दास जी कहते है अगर हमारा मन शीतल है तो इस संसार में हमारा कोई बैरी नहीं हो सकता।  अगर अहंकार छोड़ दें तो हर कोई हम पर दया करने को तैयार हो जाता है।

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दोस्तों हमारे ज्यादातर रिश्ते हमारे अहंकार के कारण टूट जाते हैं। हमारा व्यवहार ही हमारा व्यक्तित्व होता है। हम दूसरे लोगों से जिस तरह से पेश आते हैं, दूसरों से जिस तरह का व्यवहार करते हैं, दूसरे भी हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं। अगर हम दूसरों से प्रेम से, ख़ुशी से, मुस्कुराकर पेश आयेंगे तो दूसरे लोग भी हमसे ऐसे ही पेश आयेंगे। अगर किसी से जलन, ईर्ष्या, दुश्मनी रखेंगे, किसी के साथ बुरा बर्ताव करेंगे, ख़राब व्यवहार करेंगे, अहंकार, घमंड से बात करेंगे तो दूसरे भी हमसे ऐसा ही व्यवहार रखेंगे।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।

कबीर दास जी कहते है कि सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। मूल्य तलवार का होता है न कि उसकी मयान का ,उसे ढकने वाले खोल का।

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आज के समय में ज्यादातर लोग किसी इन्सान की पहचान उसके चेहरे से, उसकी जाति से करते हैं। अगर कोई चेहरे से सुन्दर है, उच्च जाति का है तो सब उससे अच्छे से बात करते है, मान सम्मान देते हैं (beautiful face, belongs to upper caste, then everyone talks to him well, gives respect)। अगर कोई साधारण सा चेहरे वाला है, निम्न जाति का तो वो ही लोग उसे तृष्णा की नजर से देखते हैं, छोटा समझते हैं। दोस्तों किसी इन्सान की पहचान उसके चेहरे , कपड़ों, या उसकी जाति से नहीं होती है। इन्सान की पहचान तो उसके दिल से होती है, उसके व्यवहार से होती है, उसके ज्ञान से होती है, उसकी सोच से होती है। जो बाहर से अच्छा दिखता हो, जरुरी नहीं कि वो अन्दर से भी अच्छा ही हो।

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त।

अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।।

कबीर दास जी कहते है कि यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के दोष देख कर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत।

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लोग दूसरों में तमाम कमियाँ, दोष, गलतियाँ निकाल देते है, उन पर हँसते हैं, मजाक उड़ाते हैं लेकिन अपने अन्दर कोई झाँक कर नहीं देखता। दूसरों की कमियाँ, दोष, गलतियाँ निकालने से पहले एक बार अपने अन्दर भी झाँक कर देख लेना चाहिये कि कहीं वो कमियाँ आपके अन्दर भी तो नहीं हैं।

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।

मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।

कबीर दास जी कहते है कि जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते  हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।

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मेहनत करने वालों को, प्रयास, कोशिश करने वालों को जीवन में कभी निराश नहीं होना पड़ता (work hard, try, try never have to be disappointed in life)। मेहनत करने वाला अपनी मेहनत से जो चाहता है वो पा लेता है। लेकिन जो लोग हाथ पे हाथ धरे बैठे रहते हैं, मेहनत नहीं करना चाहते हैं वो अपने जीवन में कुछ हासिल नहीं कर पाते हैं, उन्हें हमेशा निराशा ही हाथ लगती है। मछुआरा पानी में उतरता है और मछलियाँ पकड़ कर लाता है और जो नदी किनारे बैठा रहता है उसे खाली हाथ घर लौटना पड़ता है।

निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय।

बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।

कबीर दास जी कहते है कि जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है।

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दरअसल अगर हम सच में अपने आप को बेहतर बनाना चाहते हैं तो हमें अपने निंदक, आलोचक, कमियाँ निकालने वालों को (cynics, critics, fault-finders) ढूँढना चाहिये। क्योंकि ये ही वो लोग हैं जो बिना पानी, बिना साबुन, बिना पैसे के ही हमें बेहतर बनाने में अपना समय और दिमाग लगा रहे हैं (Without water, without soap, without money, we are spending our time and mind in making us better.)। c

तो दोस्तों, ये थे कबीर के वो 15 दोहे जो मैंने उनके संकलन में से निकाले हैं। उनका हर दोहा बहुत बड़ी बात कहता है। अगर कोई शख्श उनकी बातों को, उनके विचारों को अपने जीवन में उतार ले तो उसकी जिंदगी निश्चित रूप से बदल जायेगी।

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24 thoughts on “Couplets of Kabir in Hindi : कबीर के 15 दोहे जो हमें जीने का तरीका सिखाते हैं”

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    Thanks

  2. कविवर कबीरदास जी के इन महत्वपूर्ण दोहो के बारे मे हमे बताया, आपका बहुत बहुत धन्यवाद पुष्पेंद्र जी।

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