आज मैं आपके सामने पेश कर रहा हूँ एक ऐसी लड़की विल्मा रुडोल्फ की कहानी (Wilma Rudolf life story in hindi) जिसने बहुत अभावों, गरीबी, कठिन परिस्तिथियों, मुश्किलो से निकलकर आसमान की बुलंदियों को छुआ है। विल्मा का जन्म 1939 में अमेरिका के टेनेसी राज्य के एक गरीब परिवार में हुआ था।
विल्मा के पिता रुडोल्फ एक कुली थे तथा माँ एक सर्वेंट थी। चार साल की उम्र में विल्मा को बुखार और निमोनिया हो गया जिससे उसे पोलियो हो गया और वह विकलांग हो गई। उसे पैरों में लोहे के ब्रेस पहनने पड़े। काफी इलाज के बाद डॉकटरों ने भी हार मान ली और कह दिया कि वह कभी भी बिना ब्रेस के नहीं चल नहीं पायेगी।
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विल्मा की माँ एक सकारात्मक मनोवृत्ति की महिला थी। विल्मा का मनोबल बना रहे इसलिए उसकी माँ ने उसका एक स्कूल में दाखिला करा दिया। उन्होंने उसका हौसला बढ़ाया तथा कहा कि इस संसार में कुछ भी नामुमकिन नहीं है, तुम जो चाहो प्राप्त कर सकती हो। विल्मा ने अपनी माँ से कहा – ‘क्या मैं दुनिया की सबसे तेज दौड़ने वाली महिला बन सकती हूं ?’’
इस पर माँ ने विल्मा से कहा कि ईश्वर पर विश्वास, मेहनत और लगन से तुम जो चाहो बन सकती हो।
माँ की बात विल्मा के मन में इस कदर बैठ गयी कि नौ साल की उम्र में उसने जिद करके डॉकटरो की सलाह के विपरीत अपने ब्रेस निकलवा दिए और चलने की कोशिश की। बिना ब्रेस के चलने की कोशिश में वह कई बार गिरी, कई बार चोटिल हुई और दर्द सहन करती रही लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी तथा लगातार कोशिश करती रही। आखिर में परिस्तिथियाँ उसकी जिद के सामने हार गयीं और दो वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद वह बिना ब्रेस के तथा बिना किसी सहारे के चलने में कामयाब हो गई।
जब ये बात विल्मा के डॉक्टर को पता चली तो वे उससे मिलने आये। उन्होंने विल्मा को चलते हुए देखकर कहा कि – शाबाश बेटी ! तुमने अपनी मेहनत और लगन से मेरी बात को झूठा साबित कर दिया। उन्होंने उसे सीने से लगाते हुए कहा कि तुम्हारे अंदर जो आत्मविश्वास है, जो लगन है उससे तुम खूब दौड़ोगी और एक दिन सबको पीछे छोड़ दोगी, तुम्हे कोई नहीं रोक सकता।
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13 वर्ष की उम्र में विल्मा ने पहली बार दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और बहुत बड़े अंतर से सबसे आखिरी स्थान पर आई। लेकिन उसने हार नहीं मानी और और लगातार दौड़ प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती रही। कई बार हारने के बावजूद वह पीछे नहीं हटी और कोशिश करती रही। और एक ऐसा दिन भी आया जब उसने प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया।
15 वर्ष की उम्र में उसने टेनेसी राज्य विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया जहाँ उसे कोच एड टेम्पल मिले। विल्मा ने टेम्पल को अपनी इच्छा के बारे में बताया कि वह दुनियां कि सबसे तेज धाविका बनना चाहती है। टेंपल ने उसकी इच्छा शक्ति तथा आत्मविश्वास को देखकर कहा कि तुम्हे कोई नहीं रोक सकता और इसमें मैं तुम्हारी मदद करूँगा।
अब तो विल्मा ने रात दिन एक कर दिया और अपने प्रदर्शन को सुधारती गई। और आख़िरकार उसे ओलम्पिक में भाग लेने का मौका मिल ही गया। ओलम्पिक में विल्मा का सामना एक ऐसी धाविका (यूटा हेन) से हुआ जिसे तब तक कोई नहीं हरा सका था। पहली रेस 100 मीटर की थी जिसमे विल्मा ने यूटा को हराकर स्वर्ण पदक जीत लिया। दूसरी रेस 200 मीटर कि थी इसमें भी विल्मा के सामने यूटा ही थी तथा इसमें भी विल्मा ने यूटा को हरा दिया और दूसरा स्वर्ण पदक जीत लिया।
तीसरी रेस 400 मीटर की रिले रेस थी जिसमे सबसे तेज दौड़ने वाला धावक सबसे आखिर में दौड़ता है। विल्मा का मुकाबला एक बार फिर यूटा की ही टीम से था। विल्मा और यूटा भी अपनी अपनी टीम में आखिर में दौड़ रही थीं। रेस शुरू हुई, विल्मा की टीम की पहली तीन धाविकाओं ने अपनी अपनी बेटन आसानी से बदल ली लेकिन जब विल्मा की बारी आई तो बेटन उसके हाथ से गिर गई। इसी बीच यूटा उससे आगे निकल गई। विल्मा ने बेटन उठाई और मशीन की तरह दौड़ती हुई यूटा से आगे निकल गई और तीसरी बार यूटा को हराते हुए तीसरा स्वर्ण पदक भी जीत लिया।
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यह इतिहास बन गया। ऐसा करिश्मा फिर दोबारा कभी नहीं हुआ। कभी पोलियो ग्रस्त रही एक लड़की, जिसे डॉकटरो ने कहा था कि यह कभी नहीं चल पायेगी, वह दुनिया की सबसे तेज दौड़ने वाली धाविका बन चुकी थी।
एक ऐसी लड़की जो बचपन में पोलियो ग्रस्त रही, जिसे डॉकटरो ने कहा था कि यह कभी नहीं चल पायेगी, वो अपने आत्मविश्वास, मेहनत और लगन से न केवल चली बल्कि ओलम्पिक में दौड़ी भी और तीन स्वर्ण पदक भी जीते। नामुमकिन को मुमकिन कर दिया था उसने।
उसने अपने जज्बे से तमाम मुश्किलो, कठिनाइयों को हराकर अपने सपने को साकार किया और दुनियाँ में सबसे तेज दौड़ने वाली धाविका बनी।
तो दोस्तों आप भी आत्मविश्वास, लगन तथा मेहनत के दम पर बड़ी से बड़ी मुश्किलों को हराकर अपने सपनो को साकार कर सकते हैं, आसमान की बुलंदियों को छू सकते हैं।
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