दुनिया की सबसे बड़ी साइकिल कंपनी बनाने वाले ओ.पी.मुंजाल का प्रेरणादायक जीवन

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ओ. पी. मुंजाल को साइकिल उधोग का जनक कहा जाता है। ओ. पी. मुंजाल दुनिया की सबसे बड़ी भारतीय साइकिल कंपनी “Hero Cycles” के चेयरमैन थे। उनका जन्म 26 अगस्त 1928 को कमालिया (पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता का नाम बहादुर चंद मुंजाल तथा माता का नाम ठाकुर देवी था। उनके परिवार में एक बेटा पंकज मुंजाल तथा चार बेटियां हैं। 87 वर्ष की आयु में D.M.C. Hero Heart Center अस्पताल में 13 अगस्त 2015 को उनका निधन हो गया। अपने बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हुए उन्होंने कुछ दिन पहले ही कंपनी की बागडोर अपने बेटे पंकज मुंजाल को सौंप दी थी।

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वर्तमान में पंकज मुंजाल Hero Cycles के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। इस ग्रुप (Hero Cycles) में हीरो मोटर्स लिमिटेड, जेड.एफ. हीरो चेसिस सिस्टम्स एवं मुंजाल किरियू इंडस्ट्रीज और मुंजाल हास्पिटैलिटी और घर के सजावटी सामान बनाने वाली कंपनी ओमा लिविंग्स शामिल हैं। वर्तमान में हीरो साइकिल का टर्नओवर लगभग 2300 करोड़ रुपए है।

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Two Wheeler मोटरसाइकिल बनाने वाली कंपनी हीरो मोटपकार्प ( Hero Motocorp) के मालिक ब्रजमोहनलाल मुंजाल हैं। वे ओ.पी. मुंजाल के भाई हैं।

शुरुआती जीवन

भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से पहले उनका परिवार कमालिया (अब पाकिस्तान में) में रहता था। उनके पिता बहादुरचंद की अनाज की दुकान थी। बंटवारे के बाद ओ. पी. मुंजाल अपने तीन भाइयों ब्रजमोहन लाल मुंजाल, दयानंद मुंजाल और सत्यानंद मुंजाल के साथ लुधियाना आ गए। यहाँ आकर मुंजाल भाइयों ने अमृतसर की गलियों, फुटपाथों पर साइकिल के पुर्जे सप्लाई करने का काम शुरू किया। ओ.पी. शहर-शहर घूमकर पुर्जों के ठेके लेते थे।

हीरो साइकिल की शुरुआत

जब काम थोड़ा चल निकला तो 1956 में ओ.पी. मुंजाल ने बैंक से 50 हजार रुपए का कर्ज लिया और लुधियाना में साइकिल के पा‌र्ट्स बनाने की पहली यूनिट लगाई। कंपनी का नाम रखा Hero Cycles.  उसी साल उन्होंने पूरी साइकिल असेम्बल करना शुरू कर दिया। शुरुआत में 25 साइकिलें रोज बनती थीं।

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हीरो साइकिल को बनाया नंबर वन

शुरुआत में 25 साइकिलें रोज बनाने वाली मुंजाल की कंपनी Hero Cycles 10 साल के अंदर ही 1966 में सालाना एक लाख साइकिल बनाने वाली कंपनी बन गयी। अगले दस साल में यह क्षमता बढ़कर सालाना पांच लाख से अधिक हो गई। 1986 तक Hero Cycles सालाना 22 लाख से अधिक साइकिलों का उत्पादन करने लगी थी । 1980 के दशक में Hero Cycles ने रोजाना 19 हजार साइकिलों के उत्पादन के साथ दुनिया की सबसे ब़़डी साइकिल कंपनी का दर्जा हासिल किया।

इस उपलब्धि के लिए 1986 में Hero Cycles का नाम गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया। वर्तमान में देश के साइकिल बाजार में Hero Cycles की हिस्सेदारी करीब 48 फीसदी है। यह सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि मध्य पूर्व, अफ्रीका, एशिया और यूरोप के 89 देशों में साइकिल निर्यात करती है।

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लीडरशिप स्किल्स

Hero Cycles को दुनिया की नंबर वन कंपनी बनाने में ओ.पी.मुंजाल की लीडरशिप स्किल्स तथा दूरदर्शी सोच का ही कमाल है। ओ.पी. मुंजाल अपने काम के प्रति ईमानदार थे। वे अपने कस्टमर्स को कभी निराश नहीं करते थे। उनके काम करने के तरीको तथा लीडरशिप को हम निम्न बातो में देख सकते हैं।

1. एक बार जब उनकी कंपनी के कर्मचारी हड़ताल पर थे तो ओ.पी. मुंजाल खुद ही मशीन चलाने लगे। कुछ सीनियर अधिकारियों ने उन्हें रोका और कहा – सर, आप ये मत करिए। जवाब में ओ.पी. बोले – आप चाहें तो घर जा सकते हैं। आप चाहे काम करें या न करें लेकिन मेरे पास ऑर्डर हैं और मैं काम करूंगा। उसके बाद कहा कि “एक बार डीलर तो समझ जायेंगे कि हड़ताल के कारण काम नहीं हो रहा है।

लेकिन वह बच्चा कैसे समझेगा जिसके माता-पिता ने बर्थडे पर उसे साइकिल दिलाने का वादा कर रखा है और हमारी हड़ताल के कारण शायद उसे साइकिल न मिले। अगर मैं अपने बच्चे से वादा करूं तो यह अपेक्षा भी करूंगा कि उसे पूरा करूं। इसीलिए मैं जितनी साइकिल बना सकता हूं, बनाऊंगा। ये बात सुनकर सभी कर्मचारी वापस काम पर लौट आये और उस दिन जितने भी ऑर्डर पेंडिंग थे, सब पूरे कर दिए गए।

2. ओ.पी. मुंजाल इतने बड़े बिजनेस लीडर बनने के बावजूद डिजिटल टेक्नोलॉजी से दूर ही रहे। उनका मानना था कि टेक्नोलॉजी जरूरी है लेकिन टेक्नोलॉजी का गुलाम बनना जरूरी नहीं है। टेक्नोलॉजी को लेकर मुंजाल की सोच थी कि डिजिटल टेक्नोलॉजी आपकी प्रोडक्टिविटी की राह में रोड़ा बन जाती है।

आपका मेलबॉक्स कई लोगों के ऐसे सी.सी. मेल्स से भरा होता है, जिनको जानने में किसी की दिलचस्पी नहीं होती। टेक्नोलॉजी आपकी परफॉर्मेंस की दुश्मन हो जाती है, जब प्रेजेंटेशन बनाने पर कई-कई हफ्ते बर्बाद होते हैं। जबकि इसी वक्त का इस्तेमाल टास्क पूरा करने में किया जा सकता है।

3. सन् 1990 में जब दूसरी कंपनियों की साइकिलों की सेल डाउन थी, मगर हीरो तरक्की कर रही थी। तब एक डीलर को कंपनी से एक चेक मिला, जिसके साथ मिले लेटर में लिखा था कि यह बोनस पेमेंट है। उसे हैरानी हुई तो उसने खुद मुंजाल को फोन करके मालूम किया कि मुझे बोनस क्यों दिया गया।

उन्होंने जवाब दिया कि एक कंसाइनमेंट के बदले आए पेमेंट में डॉलर के रेट की fluctuation के चलते 10 रुपए प्रति डॉलर का फायदा कंपनी को हुआ है। इस मुनाफे में कंपनी के कर्मचारी और डीलर भी बराबर के हकदार हैं। ऐसी बातें ही कर्मचारी और डीलर्स के मन को छू जाती थीं, जो तन-मन से कंपनी की तरक्की में मदद करते आ रहे हैं।

4. सन् 1980 में हीरो साइकिल से लदा ट्रक एक्सिडेंट में पलट गया और उसमे आग लग गयी जिससे पूरा कंसाइनमेंट जल गया । उन दिनों ट्रांसपोर्टेशन पर इंश्योरेंस नहीं होती थी। डीलर अपनी दुकान बंद करने वाला था। हादसे की खबर जब मुंजाल तक पहुंची तो उन्होंने सबसे पहले अपने मैनेजर से सवाल किया कि ड्राइवर तो ठीक है ना। फिर मैनेजर को हिदायत दी कि उस डीलर को फ्रेश कंसाइनमेंट भेजा जाए, क्योंकि इसमें डीलर की कोई गलती नहीं है, उसका नुकसान मेरा निजी नुकसान है।

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ब्रिटेन में सुपर ब्रांड

2004 में हीरो साइकिल को ब्रिटेन में सुपर ब्रांड का दर्जा हासिल हुआ। आज हीरो साइकिल्स 14 करोड़ साइकिलों के निर्माण के साथ दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी का दर्जा हासिल कर चुकी है। कंपनी में फिलहाल 30 हजार कर्मचारी और दुनियाभर में 7500 आउटलेट्स हैं।

विदेशों में चर्चा

हीरो के प्रबंधन की बी.बी.सी. और व‌र्ल्ड बैंक ने भी तारीफ की है। लंदन बिजनेस स्कूल और इंसीड फ्रांस में हीरो कंपनी पर entrepreneurship के लिए केस स्टडी किया जाता है। हीरो साइकिल को इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट के लिए लगातार 28 साल से बेस्ट एक्सपोर्टर अवॉर्ड से नवाजा जा रहा है।

पुरस्कार और सम्मान

पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन, वीवी गिरि, जैल सिंह और एपीजे अब्दुल कलाम ओ.पी. मुंजाल को सम्मानित कर चुके हैं। 1990 में उन्हें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता अवॉर्ड दिया गया। ओपी को उर्दू शायरी काफी पसंद थी। 1994 में उन्हें साहित्य सेवा के लिए साहिर पुरस्कार दिया गया। वह बड़े परोपकारी थे। उन्होंने कई स्वास्थ्य और शिक्षा संस्थानों को दान किया। उन्हें पंजाब रत्न अवॉर्ड भी दिया गया था।

मुंजाल का जीवन बहुत लोगो को प्रेरणा देता है। उन्होंने साइकिल के छोटे छोटे पार्ट्स बेचने से शुरुआत की और अपनी सोच और दूरदर्शिता से दुनिया की सबसे ज्यादा साइकिल बनाने वाली अरबो की कंपनी खड़ी कर दी। उनके जीवन से हम यह प्रेरणा ले सकते है कि अगर हमारी सोच सही है तो हम मेहनत, लगन और दूरदर्शिता से छोटे से काम या छोटी सी दुकान या कंपनी को भी बहुत बड़ी कंपनी बना सकते है और अपने व्यापार या दुकान को गली, मोहल्लो से निकाल कर दुनिया के सामने ला सकते हैं।

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