Arunima Sinha Biography : अरुणिमा सिन्हा : कृत्रिम पैर के सहारे एवरेस्ट को फतह करने वाली दुनिया की  पहली विकलांग महिला

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“असंभव और संभव के बीच का अन्तर किसी व्यक्ति के दृढ़ संकल्प पर निर्भर करता है।”

अगर किसी इंसान के अंदर अपने लक्ष्य को पाने का दृढ़ (achieve the goal) संकल्प है। और वो अंदर चुनौतियों से सामना करने का साहस है, कुछ कर गुजरने का जज्बा है, तो वो असंभव को भी संभव बना सकता है (make the impossible possible)।

एक बार जब कोई व्यक्ति किसी काम को करने का, अपने सपने को पूरा करने का, अपने लक्ष्य को हासिल करने का संकल्प ले लेता है। तो दुनिया की कोई ताकत, कोई मुश्किल, कोई चुनौती उसका रास्ता नहीं रोक सकती। जो लोग किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानते हैं, वो इतिहास को बदल देते हैं और नया इतिहास रचते हैं।

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आज हम एक ऐसी ही लड़की के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने अपने साहस, अपने जज्बे से असंभव को संभव बनाकर नया इतिहास रचा है।

जहाँ दोनों पैर सही सलामत होने के बावजूद लोग दुनिया की सबसे ऊँची छोटी Mount Everest पर चढ़ने का सोच तक नहीं पाते हैं। वहीं इन्होने अपना एक पैर खोने के बाद, सिर्फ एक पैर के सहारे एवरेस्ट पर चढने के बारे में ना सिर्फ सोचा। बल्कि उस पर फतह हासिल करके world record  भी बनाया। इनकी उपलब्धियों के लिए साल 2015 में इन्हे पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया(awarded Padma Shri in the year 2015)।

 

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इनका नाम है अरुणिमा सिन्हा। आइये जानते हैं अरुणिमा सिन्हा की प्रेरणादायक ज़िंदगी (Motivational story of Arunima Sinha) के बारे में।

 

अरुणिमा सिन्हा का प्रारंभिक जीवन (Early life of Arunima Sinha)

अरुणिमा सिन्हा का जन्म 1988 में उत्तर प्रदेश राज्य के आंबेडकर नगर में हुआ था (Arunima Sinha was born in Ambedkar Nagar)। इनकी प्रारंभिक शिक्षा यहीं से हुई। इन्होने समाज शास्त्र में Master Degree ली है। खेल में इनकी रूचि बचपन से ही रही है। वालीबॉल इनका पसंदीदा खेल था(favorite sport)। जिसमें ये राष्ट्रीय स्तर की खिलाडी रही हैं।

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एक दुर्घटना में खो दिया पैर

खेल के साथ साथ वे CISF की नौकरी भी करना चाहती थी। 11 अप्रैल 2011 को वो CISF (Central Industrial Security Force) की प्रवेश परीक्षा देने के लिए ये ट्रेन से लखनऊ से दिल्ली जा रही थी। रात में चलती ट्रेन में कुछ चोर बदमाशों ने इनसे इनका बैग और सोने की चैन छीनने की कोशिश की। अपना सामान बचाने के लिए ये बदमाशों से भिड़ गयी। इसी छीना झपटी के बीच बदमाशों ने इन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया। जब ये नीचे गिरी तभी दूसरे ट्रैक पर आ रही ट्रेन ने इन्हें अपनी चपेट में ले लिया। जिससे इनका एक पैर पूरी तरह से कुचल गया। दूसरे पैर की हड्डी टूट गयी और इनके Spinal Cord में Fracture हो गया।

ये लगभग 7 घंटे तक ऐसे ही रेलवे ट्रैक पर पड़ी रहीं। इनके शरीर में हलचल बंद हो गयी थी। हाथ पैरों ने काम करना बंद कर दिया था। इस दौरान इनके ऊपर से 49 ट्रेनें गुजरी। पूरी रात कोई भी इनकी मदद को नही आया। रात में चूहे इनकी कुचली हुई टाँग को कुतर रहे थे। और ये कुछ नहीं कर पा रही थीं। बस देख पा रही थीं, सुन पा रही थीं और उस भयंकर दर्द को महसूस कर रही थी और दर्द से तड़प रही थीं।

सुबह एक ग्रामीण ने उन्हें ट्रैक पर पड़े देखा तो इन्हें अस्पताल में भर्ती कराया। इनकी जान बचाने के लिए डॉक्टरों को इनका एक पैर काटना पड़ा। इनके दूसरे पैर में rod  डालनी पड़ी। इनके कटे हुए पैर में डॉक्टरों ने एक कृत्रिम पैर (Artificial leg) लगा दिया।

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आरोपों ने बदल दी सोच

अरुणिमा लगभग चार महीनों तक AIMS (All India Institute of Medical Sciences)में रही। इसी दौरान पुलिस और मीडिया ने इनके खिलाफ रिपोर्ट दी कि ये बिना टिकट यात्रा कर रहीं थी। इन्होने आत्महत्या करने की कोशिश की थी। कोर्ट के आदेश के बाद इसकी जाँच हुई और सब रिपोर्ट और खबर गलत साबित हुई। इसके बाद खेल मंत्रालय और रेलवे की ओर से इन्हे सरकारी सहायता दी गयी।

अपने बारे में negative news आने के बाद इन्होने सोच लिया था कि जिंदगी में कुछ अलग करना है और अपनी पहचान बनानी है। इसी दौरान भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह कैंसर को हराकर वापस लौटे थे। उनकी कहानी ने इन्हें बहुत प्रभावित किया। इसके बाद इन्होने निर्णय ले लिया कि लोगों की नजर में लाचार और अपाहिज बनने की बजाय कुछ ऐसा करुँगी जो किसी ने ना किया हो। इन्होने एवरेस्ट पर चढ़ने का निर्णय ले लिया।

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एक पैर से किया एवरेस्ट को फतह

अस्पताल से निकलते ही ये सीधे घर जाने के बजाय Mount Everest पर चढ़ने वाली बछेंद्री पाल से मिलने गयी। बछेंद्री पाल ने इनकी हालत को देखते हुए इन्हें आराम करने की सलाह दी। लेकिन अरुणिमा एवरेस्ट पर चढ़ने का मन बना चुकी थी। इनके जज्बे को देखते हुए बछेंद्री ने इनसे कहा “अपने लिए तो तुम एवरेस्ट को जीत चुकी हो। अब तो सिर्फ लोगों के लिए एवरेस्ट को जीतना बाकी है”।

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इसके बाद इन्हें उत्तरकाशी में Tata Steel Adventure Foundation में ट्रेनिंग के लिए भेजा गया। इसके बाद  Nehru Mountaineering Institute में इनकी ट्रेनिंग हुई। इसके बाद इन्होने “Iceland Peak” और Mount कांगडी पर उतरना चढ़ना शुरू किया। खूब प्रैक्टिस करने के बाद इन्होने Mount Everest पर चढ़ना शुरू किया और 21 मई 2013 को एवरेस्ट को फतह कर लिया।

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मुश्किलें डिगा नहीं पाई हौंसला (Difficulties did not dampen the spirits)

जिंदगी में सफलता कभी भी बिना मुश्किलों, बिना चुनौतियों के नहीं मिलती। लेकिन जो लोग मुश्किलों का सामना करके, चुनौतियों को पार करके आगे बढ़ते हैं, उन्हीं को मंजिल मिलती है।

इनके रस्ते में भी बहुत सी मुश्किलें, बहुत सी चुनौतियाँ आयीं। दोनों पैर सही सलामत होने के बावजूद एवरेस्ट पर चढ़ना बहुत खतरे का काम होता है। बर्फ पर फिसलना, ऑक्सीजन की कमी, और कंधे पर सामान लेकर चढ़ना जैसी मुश्किलें तो होती ही हैं, साथ में बर्फ में हाथ पैरों के जमने की वजह से ऊपर चढ़ा ही नहीं जाता है।

ऑक्सीजन की कमी से बहुत से लोग पहाड़ पे ही मर जाते हैं। रास्ते में इन्हे भी कई जगह बर्फ में दबे हुए और ऑक्सीजन की कमी से तड़पते हुए , मरे हुए लोग मिले। कई बार इनका भी हौसला टूटा, लेकिन हर बार इन्होने अपने आप से ये ही कहा कि चाहे कुछ भी हो जाये एवरेस्ट को तो फतह करना ही है।

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इनके एक पैर में rod डली थी। दूसरा पैर कृत्रिम था। चढ़ते समय इनका कृत्रिम पैर घूम जाता था जिससे इनकी पकड़ अच्छी नहीं हो पाती थी। वापसी में इनकी ऑक्सीजन खत्म हो गयी। इनका पैर निकल कर गिर गया। इनकी अंगुलियाँ जमने लगी। फिर भी अपने साहस, अपने जज्बे से इन्होने हिम्मत न हारकर एवरेस्ट को फतह किया। रास्तें की मुश्किलें, शारीरिक कमी और मौसम की चुनौतियाँ इनके हौंसलों को डिगा नहीं पायीं।

 

सात महाद्वीप की सात चोटियों को कर चुकी हैं फतह

इनके साहस और जज्बे का सिलसिला सिर्फ एवेरस्ट तक ही नहीं रुका। एवरेस्ट को फतह करने के बाद ये “एवरेस्ट को फतह करने वाली भारत की प्रथम विकलांग महिला” और “एवरेस्ट को फतह करने वाली विश्व की प्रथम विकलांग महिला” का World Record  अपने नाम कर चुकी हैं। इसके साथ साथ ये दुनिया के 7 महाद्वीपों की 7 सबसे ऊँची चोटियों को भी फतह कर चुकी हैं।

 

1 Mount Everest (Asia) 8848 Mtr. 21-05-2013
2 Mount Kilimanjaro (Africa) 5895 Mtr. 11-05-2014
3 Mount Elbrus (Europe) 5642 Mtr. 27-05-2014
4 Mount Kosciuszko (Australia) 2228 Mtr. 20-04-2015
5 Mount McKinley (USA) 6194 Mtr.
6 Mount Vinson (Antarctica) 4892 Mtr.
7 Mount Aconcagua (South Africa) 6962 Mtr. 25-12-2015
8 Mount Carstensz Pyramid (Indonesia) 4884 Mtr. 08-07-2016

 

अवार्ड और सम्मान

  1. Amazing Indian Award – 2014 by Dr. A.P.J. Abdul Kalam
  2. Tenzing Norgay Award – 2015 by President Pranab Mukherjee
  3. Padmashri Award – 2015 by President Pranab Mukherjee
  4. First Lady Award – 2016
  5. Malala Award
  6. Yash Bharti Award
  7. Rani Laxmi Bai Award
  8. Maati Ratan Samman

 

तो दोस्तों, देखा आपने कि कैसे अरुणिमा सिन्हा ने एक पैर खोने के बाद भी लाचारों और अपाहिजों वाली ज़िंदगी गुजारने के बजाय कृत्रिम पैर के सहारे अपने साहस, जज्बे और दृढ संकल्प से न केवल दुनियाँ  की सबसे ऊँची चोटी को फतह किया, बल्कि उसके साथ साथ दुनिया की 7 और सबसे ऊँची चोटियों को फतह किया। इन्होने पूरी दुनिया को दिखाया कि अगर किसी इंसान के अंदर साहस है, जज्बा है तो उसकी विकलांगता उसको उसके सपने पूरे करने से, उसकी ज़िंदगी को बदलने से नहीं रोक सकती।

 

क्या प्रेरणा मिलती है हमें इनकी कहानी से ??

इस कहानी से हमें ये प्रेरणा मिलती है कि जिंदगी में चाहे कितनी भी मुश्किलें आयें, कितना भी बुरे से बुरा वक़्त आये, कभी भी घबराना नहीं चाहिए, कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहियें और कभी हार नही माननी चाहिए। मुश्किलों और बुरे वक़्त से डरकर भागने के बजाय, अपने साहस और जज्बे से उनका डटकर सामना करना चाहिए। सकारात्मक सोच के साथ मुश्किलों से बाहर निकलने के रास्ते, अपनी ज़िंदगी को बदलने के तरीके ढूँढने चाहिये।

एक बार अगर आपने अपने लक्ष्य को पाने का, अपनी जिंदगी को बदलने का दृढ़ संकल्प कर लिया और आपके अंदर साहस और जज्बा है तो दुनिया की कोई मुश्किल, कोई ताकत आपको अपनी मंजिल को पाने से, आपकी जिंदगी को बदलने से नहीं रोक सकती।

 


 

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