Hindu Traditions and their Scientific Logic and Benefits : हिन्दू परम्परायें और उनके वैज्ञानिक तर्क और फायदे

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Hindu Traditions and their Scientific Logic and Benefits : हिन्दू परम्परायें और उनके वैज्ञानिक तर्क और फायदे

भारत परम्पराओं (Traditions) का देश है। हमारे देश में तरह तरह के रीति रिवाज और परम्परायें निभाई जाती हैं। और इन्ही परम्पराओं, रीति रिवाजों की वजह से दुनियां में भारत का एक अलग आकर्षण है। ये परम्परायें बहुत पुराने समय से चली आ रही हैं और ज्यादातर हिन्दू धर्म से जुड़ी दिखाई देती हैं।  कुछ लोग इन्हें अन्धविश्वास (Superstition) मानते हैं। जबकि आज भी बहुत से लोग इन परम्पराओं को ऐसे ही निभा रहें हैं।

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अगर आप इन परम्पराओं को गहराई से देखें और वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो आप पायेंगे कि हमारे ऋषि मुनियों और पूर्वजों ने गहन अध्ययन करके मनुष्य के लाभ के लिए इनको शुरू किया था। ये हमें स्वास्थ्य सम्बन्धी बहुत सी बीमारियों और समस्याओं से बचाती हैं। और इसे  वैज्ञानिक भी प्रमाणित कर चुके हैं।

आज मैं आपके सामने ऐसी ही 15 परम्पराओं के बारे में बताने जा रहा हूँ जिनका अपना एक वैज्ञानिक आधार भी है और फायदे भी हैं।

1. व्रत रखना / उपवास रखना (Fasting)

हिन्दू धर्म में व्रत रखने का बहुत महत्व है। लोग, खासतौर पर महिलाएं अपनी अपनी श्रद्दा और आस्था के अनुसार अलग अलग देवी, देवताओं को मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। और फिर सप्ताह में एक दिन, या खास मौको या त्योहारों पर अपने देवी देवताओं के लिए व्रत रखते हैं। जिसमें वे पूरे दिन बगैर अन्न खाए सिर्फ फल खाकर ही रहते हैं। धर्म और मान्यता के अनुसार व्रत रखने से देवी, देवता प्रसन्न होते हैं तथा कष्टों और परेशानियों को दूर करके, मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।

वैज्ञानिक तर्क :- धर्म और मान्यता के साथ साथ सप्ताह में एक दिन व्रत रखना वैज्ञानिक दृष्टि से भी फायदेमन्द है। आयुर्वेद के अनुसार व्रत रखने से और दिन भर में सिर्फ फल खाने से पाचन क्रिया को आराम मिलता है। जिससे पाचन तन्त्र (Digestion) ठीक रहता है और शरीर से हानिकारक तथा अवांछित तत्व बाहर निकल जाते हैं जिससे शरीर तथा स्वास्थ्य ठीक रहता है। एक शोध के अनुसार सप्ताह में एक दिन व्रत रखने से कैंसर, मधुमेह तथा ह्दय सम्बन्धी बीमारियों का खतरा कम होता है।

 

2. पैर छूना / चरण स्पर्श करना (Touching feet)

हम अपने बड़ों, बुजुर्गो का सम्मान और उनका आदर करने के लिए उनके पैर छूते हैं। पैर छूना या चरण स्पर्श करना भारतीयों संस्कारो का एक हिस्सा है। जो सदियों से चला आ रहा है। यही संस्कार बच्चों  को भी सिखाये जाते हैं ताकि वे भी अपने बड़ों का आदर करें और सम्मान करें।

वैज्ञानिक तर्क :- प्रत्येक मनुष्य के शरीर में मस्तिष्क से लेकर पैरों तक लगातार ऊर्जा का संचार होता है। जिसें कॉस्मिक ऊर्जा कहते हैं। जब हम किसी के पैर छूते हैं तब उस व्यक्ति के पैरों से होती हुई ऊर्जा हमारे शरीर में तथा हमारे हाथों से होते हुए उसके शरीर में पहुंचती है। और जब वह व्यक्ति आशीर्वाद देते समय हमारे सिर पर हाथ रखता है तब वह ऊर्जा दोबारा उसके हाथों से होती हुई हमारे शरीर में आती है। इस तरह पैर छूने से हमें दूसरे व्यक्ति की ऊर्जा मिलती है। जिससे नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है और हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। तथा मन को शांति मिलती है।

 

3. माथे पर तिलक लगाना (Tilak on forehead)

हिन्दू धर्म के अनुसार धार्मिक अवसरों, शादी-विवाह, त्यौहार या पूजा पाठ के समय चन्दन, कुमकुम या सिंदूर से माथे पर तिलक लगाया जाता है। हिन्दू परम्परा के अनुसार माथे पर तिलक लगाना बहुत ही शुभ माना गया है।

वैज्ञानिक तर्क :-  मानव शरीर में दोनों आँखों के बीच में एक चक्र होता है। इसी चक्र पर तिलक लगाया जाता है। इस चक्र पर एक नस होती है जिससे पूरे चेहरे पर रक्त का संचार होता है। जब माथे पर तिलक लगाया जाता है तो उस चक्र पर ऊँगली या अंगूठे से दबाव बनता है जिससे वह नस ज्यादा सक्रिय हो जाती है और पूरे चेहरे की माँस पेशियों में बेहतर तरीके से रक्त संचार करती है। जिससे ऊर्जा का संचार होता है और एकाग्रता बढ़ती है तथा चेहरे पर रौनक आती है।

 

4. हाथ जोड़कर नमस्ते करना या हाथ जोड़ना (Greet with folded hands)

हिन्दू परम्परा तथा भारतीय संस्कृति के अनुसार किसी से मिलते समय या अभिवादन करते समय हाथ जोड़कर प्रणाम किया जाता है या पूजा पाठ के समय हाथ जोड़े जाते है। दरअसल हाथ जोड़ना सम्मान का प्रतीक है।

वैज्ञानिक तर्क :-  हाथ जोड़ने पर हाथ की सभी अँगुलियों के सिरे एक दूसरे से मिलते हैं। जिससे उन पर दबाव पड़ता है। यह दबाव एक्यूप्रेशर का काम करता है। एक्यूप्रेशर चिकित्सा के अनुसार इसका सीधा असर हमारी आँखों, कानों तथा दिमाग पर पड़ता है। जिससे सामने वाला व्यक्ति हमें लम्बे समय तक याद रहता है।

इसका एक दूसरा तर्क यह भी है कि अगर आप हाथ मिलाने के बजाय हाथ जोड़कर अभिवादन करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु हम तक नही पहुंच पाते हैं। हाथ जोड़कर अभिवादन करने से एक दूसरे के हाथों का सम्पर्क नहीं हो पाता है जिससे बीमारी फ़ैलाने वाले वायरस तथा बैक्टीरिया हम तक नही पहुंच पाते हैं। और हम बीमारियों से बचे रहते हैं।

 

5. एक गौत्र में शादी नहीं करना (Not marry in a gotra)

धार्मिक मान्यता के अनुसार समान गौत्र या कुल में शादी करना प्रतिबंधित है। मान्यता के अनुसार एक ही गौत्र का होने के कारण स्त्री पुरुष भाई बहन कहलाते हैं क्योंकि उनके पूर्वज एक ही हैं। इसलिए एक ही गौत्र में शादियाँ नहीं की जाती हैं। यह बात थोड़ी अजीब भी लगती हैं कि जिन स्त्री, पुरुष ने कभी एक दूसरे को देखा तक नहीं तथा अलग अलग जगहों पर तथा अलग अलग माहौल में पले बढ़े, फिर वे भाई, बहन कैसे बन गये?

वैज्ञानिक तर्क :- लेकिन इसका एक ठोस वैज्ञानिक तर्क है कि समान गौत्र का होने के कारण चाहे वे भाई बहन हों या ना हों लेकिन उनके गुणसूत्र (Chromosome) समान होते हैं। इसलिए अगर एक गौत्र के स्त्री, पुरुषों की शादी होती है तो उनके बच्चे अनुवांशिक (Genetic)  बीमारियों के साथ पैदा होते हैं। ऐसे बच्चों में अनुवांशिक दोष जैसे मानसिक कमजोरी, अपंगता आदि गंभीर रोग जन्मजात ही पाए जाते हैं। ऐसे बच्चों की विचारधारा, व्यवहार आदि में कोई नयापन नही होता है। और उनमें रचनात्मकता का अभाव होता है। इसलिए अलग अलग गौत्र में शादी करने से स्त्री पुरुष के गुणसूत्र (Chromosome), जींस आपस में नही मिल पाते हैं जिससे उनके बच्चों में अनुवांशिक बीमारियों का खतरा नही होता है।

 

6. दक्षिण दिशा या पूर्व दिशा में सिर करके सोना (Sleeping with head towards south or east)

धर्मशास्त्रों के अनुसार सोते समय आपका सिर दक्षिण या पूर्व दिशा में होना चाहिए तथा आपके पैर उत्तर या पश्चिम दिशा में होने चाहिए। मान्यता के अनुसार ऐसा न करने पर बुरे सपने आते हैं और ये अशुभ होता है।

वैज्ञानिक तर्क :- पृथ्वी के दोनों ध्रुवों उत्तरी (North pole) तथा दक्षिण ध्रुव (South pole) में चुम्बकीय प्रवाह (Magnetic flow) होता है। उत्तरी ध्रुव पर धनात्मक (+) प्रवाह तथा दक्षिणी ध्रुव पर ऋणात्मक (-) प्रवाह होता है। उसी तरह मानव शरीर में भी सिर में धनात्मक (+) प्रवाह तथा पैरों में ऋणात्मक (-) प्रवाह होता है। विज्ञान के अनुसार दो धनात्मक (+) ध्रुव या दो ऋणात्मक (-) ध्रुव एक दूसरे से दूर भागते हैं। (चुम्बक से आप यह परीक्षण करके देख सकते हैं।)

इसलिए जब हम उत्तर दिशा की ओर सिर करके सोते हैं तो उत्तर की धनात्मक तरंग तथा सिर की धनात्मक तरंग एक दूसरे से दूर भागती हैं। जिससे हमारे दिमाग में हलचल होती है और बेचैनी बढ़ जाती है। जिससे अच्छे से नींद नही आती है और सुबह सोकर उठने के बाद भी शरीर में थकान रहती है। जिससे Blood Pressure अंसतुलित हो जाता है और मानसिक बीमारियाँ हो जाती हैं। तथा जब हम दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोते हैं तो दक्षिण की ऋणात्मक (-) तरंग तथा सिर की धनात्मक (+) तरंग आपस में मिल जाती हैं। जिससे चुम्बकीय प्रवाह आसानी से हो जाता है। और दिमाग में कोई हलचल नही होती है और अच्छी नींद आती है। और सुबह उठने पर तरोताजा महसूस करते हैं तथा मानसिक बीमारियों का खतरा नही होता है।

पूर्व दिशा में सूर्योदय होता है। जिससे सूर्योदय होने पर पूर्व दिशा की ओर पैर होने से सूर्य देव का अपमान होता है।

इसलिये हमेशा दक्षिण या पूर्व दिशा की ओर ही सिर करके सोना चाहिए |

7. जमीन पर बैठकर भोजन करना (Eating on the ground)

पुराने समय में आज की तरह डाइनिंग टेबल नहीं थी इसलिए लोग जमीन पर आसन बिछाकर उस पर बैठकर भोजन करते थे। आज के समय में जमीन पर बैठकर भोजन करने की परंपरा लगभग ख़त्म सी हो गयी है लेकिन इसका एक ठोस वैज्ञानिक कारण भी है।

वैज्ञानिक तर्क : पालथी लगाकर बैठना एक योग आसन है जिसे सुखासन कहते हैं। इस तरह बैठकर भोजन करने से एक तरह से योग होता है तथा पाचन क्रिया अच्छी रहती हैं और मोटापा, अपच, कब्ज , एसिडिटी आदि पेट की बीमारियाँ नहीं होती हैं तथा मन शांत रहता है।

 

8. भोजन की शुरुआत में तीखा खाना तथा अंत में मीठा खाना (Spicy food at the beginning of the meal and sweet food at the end)

भारतीय परम्परा के अनुसार धार्मिक अवसरों या शुभ अवसरों पर शुरुआत में तीखा खाना खाया जाता है तथा बाद में मीठा खाया जाता है। आज भी ज्यादातर लोग अपनी दैनिक दिनचर्या में खाना खाने के बाद मीठा खाते हैं। एक कहावत भी है कि “खाने के बाद कुछ मीठा हो जाये”।

वैज्ञानिक तर्क : – विज्ञान और आयुर्वेद के अनुसार शुरुआत में तीखा भोजन करने के बाद पेट में पाचन तत्व तथा अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। जिससे पाचन तंत्र तेज जाता है। तथा खाने के बाद मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है जिससे पेट में जलन या एसिडिटी नहीं होती है।

 

9. सूर्य को जल चढ़ाना (Offering water to the sun)

सूर्य को जल चढ़ाने की परम्परा बहुत पुराने समय से है। धर्म शास्त्रों के अनुसार सूर्यदेव को जल चढाने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं और मनुष्य पर सूर्य का प्रकोप नहीं होता है और उसके राशि दोष ख़त्म हो जाते हैं।

वैज्ञानिक तर्क : विज्ञान के अनुसार सूर्योदय के समय सूर्य की किरणें ज्यादा तेज नहीं होती है जो शरीर के लिए एक औषधि का काम करती हैं। उगते सूर्य को जल चढाने से तथा जल की धार में से सूर्य को देखने से सूर्य की किरणें जल में से छन कर हमारी आँखों तथा शरीर पर पड़ती हैं। जिससे आँखों की रौशनी तेज होती है तथा पीलिया, क्षय रोग, तथा दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है। सूर्य की किरणों से विटामिन-डी भी प्राप्त होता है। इसके अलावा सुबह सुबह सूर्य को जल चढाने से शुद्ध ऑक्सीजन भी हमें मिलती है।

 

10. स्नान के बाद ही भोजन करना (Eating after bath)

शास्त्रों के अनुसार बिना स्नान किये भोजन करना वर्जित है। शास्त्रों के अनुसार स्नान करके पवित्र होकर ही भोजन करना चाहिए। बिना स्नान किये भोजन करना पशुओं के समान है और अपवित्र माना गया है। तथा ऐसा करने से देवी देवता अप्रसन्न हो जाते है।

वैज्ञानिक तर्क :- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्नान करने से शरीर की गन्दगी निकल जाती है तथा शरीर में नई ताजगी तथा स्फूर्ति आती है। स्नान करने के बाद स्वभाविक रूप से भूख लगती है। उस समय भोजन करने से भोजन का रस शरीर के लिए पुष्टिवर्धक होता है।

जबकि स्नान करने से पूर्व खाना खाने से पेट की जठराग्नि उसे पचाने में लग जाती है। खाना खाने के बाद नहाने से शरीर ठंडा हो जाता है जिससे पेट की पाचन क्रिया मन्द पड़ जाती है और पाचन शक्ति कमजोर पड़ जाती तथा पेट के रोग हो जाते है।

 

11. धार्मिक कार्यो, शुभ अवसरों पर पूजा पाठ में हाथ पर कलावा बांधना (Tying Kalava on the hand in religious works, worship on auspicious occasions)

हिन्दू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कार्य, शुभ अवसर या पूजा पाठ पर दाहिने हाथ में कलावा (मौली धागा) बाँधा जाता है। शास्त्रों के अनुसार हाथ पर कलावा बांधना शुभ होता है और इससे देवी देवता प्रसन्न होते हैं।

वैज्ञानिक तर्क :- विज्ञान के अनुसार दाहिने हाथ की कलाई में ऐसी नसे होती हैं जो दिमाग तक जाती है। उस जगह कलावा बाँधने से उन नसों पर दबाव पड़ता है जिससे दिमाग तक रक्त संचार सुचारू रूप से होता है जिससे दिमाग शांत रहता है। कलावा वात , कफ तथा पित्त जैसे रोग दोषों का खतरा भी कम करता है।

 

12. मासिक धर्म में स्त्रियों का मन्दिरों या धार्मिक कार्यो में जाना वर्जित होना (Women prohibited from going to temples or religious functions during menstruation)

धर्म शास्त्रों के अनुसार स्त्रियों का मासिक धर्म (Periods)  के दिनों में मन्दिर में जाना या किसी धार्मिक कार्य में भाग लेना पूर्णत वर्जित है। सनातन धर्म के अनुसार इन दिनों में स्त्रियों के शरीर से गन्दगी बाहर निकलती है जिससे उन्हें अपवित्र माना गया है। और उनको दूसरे लोगो से अलग रहने का नियम बनाया गया है। प्राचीन कल में महिलाओं को मासिक धर्म के समय कोप भवन में रहना पड़ता था और उस समय महिलाएं बाहर आना जाना नहीं करती थीं।

वैज्ञानिक तर्क :- विज्ञान भी इस बात को मानता है कि मासिक धर्म के समय महिलाओं के शरीर से गन्दगी निकलती है तथा एक विशेष प्रकार की तरंगे निकलती हैं। जो दूसरे लोगों के लिए हानिकारक होती है तथा उनसे संक्रमण फैलने का डर रहता है। इसलिये दूसरे लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए ही स्त्रियों को इन दिनों में अलग रखे जाने की प्रथा शुरू हुई।

दूसरा कारण ये भी है कि मासिक धर्म के समय महिलाओं को अत्यधिक कमजोरी महसूस होती है। इसलिये इन्हें इन दिनों में घर के सभी कार्यो से दूर रखा जाता है ताकि उन्हें पर्याप्त आराम मिल सके।

 

13. कान छिदवाना (Ear piercing)

कान छिदवाना बहुत पुरानी परंपरा है। पुराने समय में ऋषि मुनि, राजा महाराजा कानों में कुंडल पहनते थे। आज के समय में कान छिदवाना एक फैशन बन गया है। जिसे सिर्फ भारत के लोग ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोग अपना रहे हैं। स्त्रियाँ श्रृंगार करने के लिए कान छिद्वाती हैं तथा कानों में कुंडल बालियाँ आदि पहनती हैं।

वैज्ञानिक तर्क :- वैज्ञानिक दृष्टिकोण के हिसाब से कान छिदवाना स्त्री व पुरुष दोनों के लिए लाभदायक है। कान में एक नस होती है जो दिमाग तक जाती है। कान छिदवाने से इस नस में रक्त संचार नियंत्रित रहता है। जिससे सोचने के शक्ति बढ़ती है तथा बोलने में होने वाली समस्या ख़त्म होती है और दिमाग शांत रहता है। पुरुषों के द्वारा कान छिदवाने से उनमे होने वाली हर्निया की बीमारी ख़त्म हो जाती है।

 

14. तुलसी के पौधे की पूजा करना (Worship the basil plant)

आज भी ज्यादातर घरों में तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म के अनुसार तुलसी की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि तथा खुशहाली आती है।

वैज्ञानिक तर्क :- विज्ञानं के अनुसार तुलसी वातावरण को शुद्ध करता है। जिस घर में तुलसी का पौधा होता है उस घर का वातावरण शुद्ध होता है। तुलसी मच्छरों तथा कीटाणुओं को दूर भगाता है जिससे वायु शुद्ध होती है। इसके अलावा तुलसी में रोग प्रतिरोधी गुण होते हैं। इसकी पत्तियां खाने से शरीर का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

 

15. पीपल के पेड़ की पूजा (Peepal tree worship)

धार्मिक मान्यता के अनुसार रोजाना पीपल की पूजा करने से घर की सुख, समृद्धि बढती है तथा लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। शास्त्रों के अनुसार पीपल पर साक्षात ब्रम्हा, विष्णु और शिव निवास करते हैं। इस पर लक्ष्मी तथा पितरो का वास भी बताया गया है। इसलिये पीपल का वृक्ष पूजनीय है। शनिवार को पीपल की पूजा करने से शनि के प्रभाव से मुक्ति मिलती है।

वैज्ञानिक तर्क :- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पीपल 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है जो प्राण वायु है और मानव जीवन के लिये बहुत जरूरी है। पीपल का वृक्ष गर्मी में शीतलता (ठण्डक) तथा सर्दी में उष्णता (गर्मी) प्रदान करता है। आयुर्वेद के अनुसार पीपल का हर भाग जैसे तना, पत्ते, छाल और फल सभी चिकित्सा के काम में आते हैं जिनसे कई गम्भीर रोगों का इलाज होता है।

एक दूसरा कारण इस वृक्ष को काटे जाने से बचाने का भी है। लोग इस वृक्ष को काटे नहीं, इसलिये इसकी पूजा का महत्व है। क्योंकि जीने के लिए ऑक्सीजन जरूरी है और सबसे ज्यादा ऑक्सीजन पीपल का वृक्ष ही देता है।

दोस्तों, यहाँ मैंने हिन्दू धर्म की कुछ परम्परायें तथा उनके वैज्ञानिक तर्क तथा फायदे बताये हैं। दरअसल पुराने समय से चली आ रही ये परम्परायें हमारे ऋषि मुनियों के गहन अध्ययन का नतीजा हैं जिनसे लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा का लाभ मिलता है। और अब वैज्ञानिक तथा आयुर्वेद ने भी अपने शोधों से यह प्रमाणित कर दिया है कि ऋषि मुनियों और हमारे पूर्वजों द्वारा चलाई गई ये परम्परायें मानव जीवन के लिए बहुत फायदेमंद हैं तथा जरूरी भी हैं।

 


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7 thoughts on “Hindu Traditions and their Scientific Logic and Benefits : हिन्दू परम्परायें और उनके वैज्ञानिक तर्क और फायदे”

  1. ये आर्टिकल बहुत लम्बा था पढनें में देर भले ही लगी, लेकिन जानकारी बहुत ही अच्छी है। कृपया मेरे ब्लॉग पर भी कुछ विचार व्यक्त करें।

  2. Pushpendra ji, bahut hi accha lekh likha hai aapne….shuru se end tak read kiya….bahut hi garv mehsoos kar raha hu ki mene ese desh me janm liya jiska culture itna develop tha aur hai bhi….thanks bhai…..

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